Shikaar Sleep time hindi horror story
अचानक हुई हरकत से दूसरे पहलवान में चेतना आयी। पहले पहलवान को ना देखकर वो चौकन्ना हो गया। उसने पुकारा मगर कोई जवाब नहीं। वो पहलवान को इधर उधर ढूंढने लगा। उसे लगा की कोई उसे देख रहा है मगर दिखाई कोई नहीं दे रहा। कौतुहल वश उसने ऊपर देखा। दो सुलगती आँखे ऊपर से घूरते हुए उसपर आ बरसीं। वो वहीँ ढेर हो गया।
एक तेज सांस लेते हुआ भोलन सकपका कर उठ बैठा। “कैसा भयानक सपना था।”, पसीने को अंगौछे से पोछते हुए उसने अपनी साँसे संयत कीं और पीने के लिए बगल में रखा लोटा उठाया। “धत्त… खाली।”, चिढ़ते हुए उसने कमरे के बाहर पहरा दे रहे पहलवानों को आवाज दी मगर कोई नहीं आया। “कहाँ मर गए तुम सब? पानी लाएगा कोई?” मगर अभी भी कोई उत्तर नहीं आया।
गुस्साया भोलन खुद ही पानी लेने के लिए उठ खड़ा हुआ। आधी नींद में भोलन अपने कमरे से बाहर आया जहां एक सन्नाटा पसरा था झिंगुर तक नहीं टर्रा रहे थे। पानी का दूसरा घड़ा निचले तल पर था।
पर पहलवान कहाँ गए? भोलन के दिमाग में कौतुहल जागा। वो सीढ़ियों तक चला आया पर कोई नहीं। चिंतित सा वो नीचे आया और ढूंढने लगा पर धर्मशाला एकदम खाली था मानो कभी कोई यहां था ही नहीं। घभराया सा वो बाहर भाग आया। उसकी आंखें फटी की फटी रह गयीं। उसके हट्टे कट्टे मुश्तंडे पहलवान मुरझाये फूल की तरह नीला शरीर लिए मृत पड़े हैं जैसे किसी कोबरा सांप ने उन्हें डस कर छोड़ दिया हो। भोलन की तो हालत ख़राब हो गयी।
तभी एक तरफ बांस के पेड़ो के झुण्ड में कुछ हलचल हुई जैसे कोई उस तरफ भागा हो। भोलन पल भर एक तरफ ओट लेके छुप गया और फिर हरकत की दिशा में चलने लगा।
पतली पगडंडियों, खेतों और कहीं कहीं घने जंगलों में से होते हुए उस साये का पीछा करते हुए भोलन किसी जानी पहचानी दिशा में बढ़ रहा था। मगर शायद साये को भनक भी न थी की कोई उसके पीछा कर रहा है। एक बबूल के काँटों से भरी बाढ़ जिसमें एक जगह खुली थी मानो काट कर जबरन बनाई गयी हो। साया उसमें से पार हो गया। भोलन का ध्यान एक पल के लिए भटक गया और साया उसकी आँखों के सामने से ओझल हो चूका था। आनन फानन में वो भी भीतर प्रवेश कर गया।
सामने जो ईमारत थी उसे देखकर भोलन को मानो काटो तो खून नहीं – ये मटका कोठी थी।
कोठी देखकर उसे रामु की एकएक बात याद आने लगी। मगर गिरगिट का इस कोठी से क्या नाता है ? क्या ये उसके छुपने की जगह है ? तो वो लापता गांववाले यहीं हैं ? क्या वो जिन्दा हैं ?भोलन के दिमाग में अनेकों प्रश्न घूमने लगे। इससे पहले वो कुछ और सोंचता उसने देखा की कोठी का दरवाजा खुला हुआ है। दबे कदमों से उसने कोठी में प्रवेश किआ। सामने एक आँगन था जो अपनी पुरानी शानोशौकत बयां कर रहा था। आँगन बड़ा था और तीन ओर से कोठी से घिरा था। कोठी दोमंजिला थी जिसमें कम से कम दो दर्जन कमरे होंगे। खम्बे मोटे और नक्काशीदार थे। अधटूटी छत थी और जगह जगह पुराने टूटे फूटे गमले थे जिनमे कभी रंग बिरंगे फूल मुस्कुराते होंगे।
वो अभी कोठी को देख ही रहा था की उसका ध्यान आँगन के एक कोने में बने कुँए की तरफ गया। कुछ असाधारण था वहां। कुए का मुंह खुला था और एक हल्की पीली रौशनी आती प्रतीत हो रही थी मानो कुछ भीतर जल रहा हो शायद कोई दीपक या मशाल। मगर उस निर्जन कोठी में आग ? वो भी कुँए में से ? भोलन ने धीमे कदम बढ़ाने शुरू किए। हर कदम के साथ उसकी धड़कन भी तेज हो रही थी। एकाएक एक हाथ कुँए से बाहर आता है और कुँए की दीवार पर थम जाता है। जैसे कोई ऊपर आने की चेष्टा कर रहा हो। एक कम्बल ओढ़े शख्श कुँए की देहरी लांघता हुआ जमीन पर खड़ा हो जाता है और अपने चेहरे से कम्बल हटाता है।
भोलन का दिल गुस्से और शंशय से भर जाता है उस शख्श को देखते ही, “चुनैया!” भोलन गुस्से से चींख पड़ा। उसे पकड़ने के लिए भोलन जैसे ही बढ़ने वाला होता है ठीक उसी पल भट्टाक की आवाज के साथ पीछे से उसके सर पर एक जोरदार लाठी का प्रहार होता है। अपनी सुध खोकर वो वहीँ गिर जाता है।
चुनैया और लाठी लिए वो दूसरा शख्श बेसुध पड़े भोलन को देखकर मुस्कुरा रहे थे। उनके बुने जाल में उनका मनचाहा शिकार फंस चूका था।
जारी … चौथा भाग- इंतकाम
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