कोठी में मटका,
मटके में दौलत,
चुका दे कीमत,
तीन दिन मौहलत।
Matka Kothi Sleeptime hindi horror story
पवनपुर गांव,
सूरज अस्त होने के अपने अंतिम पड़ाव पे है, और गाँव के घरों में लालटेन की रौशनी टिमटिमा रही हैं। दुनिया चाँद पर पहुंच गयी मगर पवनपुर गाँव ने अभी तक आधुनिकता का स्वाद नहीं चखा था। पवनपुर में वैसे तो कोई ख़ास जगह नहीं थी जिसे देखने के लिए लोग दौड़े चले आते, लेकिन बदकिस्मती से पवनपुर फिर भी प्रसिद्ध था अपनी मनहूस मटका कोठी के लिए।
शहर को जाने वाली कच्ची सड़क के किनारे रामु की नास्ते-चाय की झोपड़ी है जो उसकी दूकान और मकान सब है। रामु एक प्रौढ़ उम्र का आदमी है, कद-काठी उसकी किसी भी किसान जैसी ही है। अधपके से बाल हैं, कच्ची छिली सी दाढ़ी और हलकी झुर्रीदार चेहरा।
रोज की तरह रामु की चाय की दूकान पर दुकानदारी हो चुकी है, अब और ग्राहक आने की उम्मीद नहीं है, यानी अकथित रूप से दूकान बंद हो चुकी है। शहर जाने वाली उस कच्ची सी सड़क पर वही इकलौती चाय की दूकान थी। बहोत ज्यादा तो नहीं पर रामु और उसके नौकर चुनैया का काम चल जाता था।
चुनैया उस झोपड़ी नुमा दूकान के पिछवाड़े बर्तन माँझ रहा है जो एक मलिन सा अधेड़ उम्र का दुबला-पतला आदमी है, हालाँकि उसकी उम्र अभी ज्यादा नहीं है। नशे की वजह से उसका शरीर ऐसा था मानो हड्डयों के ढाँचे पे काली चमड़ी चिपका दी गयी हो। काफी पहले सुनने में आया था की चुनैया किसी सभ्रांत परिवार से था पर एक-एक करके उसका भरा पूरा परिवार समाप्त हो गया। अब वक़्त और हालात ने उसे ऐसा बना दिया। अपने चरसी स्वाभाव की वजह से कोई उसे काम नहीं देता था पर रामु के पास भी वो बस किसी तरह गिड़गिड़ा कर पड़ा हुआ था। वो तो बस छोटे मोठे काम दो रोटी में हो जाते थे इसलिए, नहीं तो रामु को भी कोई दया नहीं थी उससे। रामु उसे धिक्कारा, और कभी-कभी गुस्से में पीट भी दिया करता था लेकिन चुनैया में पलट कर जवाब देने की हिम्मत ना थी।
“धत्त … कैसी चाय बनाया रे? सारा नसा उड़ा दिआ।” भोलन ने अपने औघड़ अंदाज में चीखते हुए चुनैया को दुत्कारा। भोलन, पवनपुर गाँव का एक आवारा अनाथ और रामु का एकमात्र दोस्त। रामु भी उसे छोटे भाई मानता था क्योंकि काफी छोटे से जानता था। शरीर से भोलन मजबूत और दिमाग से निडर था। जाहिल होते हुए भी पैसे कमाने की सारी पैतरेबाजी जानता था, छोटा हो या बड़ा इससे फर्क नहीं पड़ता, बशर्ते उसमे पैसा हो और भोलन का दिल गंवारा करें। लगभग हर रात को भोलन और रामु की महफ़िल सजती थी और ख़तम तब होती जब देसी ठर्रे में चूर होकर भोलन ढेर ना हो जाये। भोलन की एक अजीब आदत और थी दारू के बाद चाय पीने की । अब देसी दारू का नशा दिमाग पर कब , कहाँ और किस बात पे सवार हो जाये कौन जानता है।
“अरे जा रे… जल्दी दूसरी बना नहीं तो ये तुझे यहीं गाड़ देगा, चल भाग।” रामु भी चुनैया पर चिल्लाया और भोलन को संभाला जो चुनैया को मारने उठ खड़ा हुआ था। “क्या रे भोलन, तू भी ना इतनी क्यों चढ़ा लेता है।” रामु ने भोलन को किसी तरह शांत किया और जमीन पर बैठाला।
“का करूँ दद्दा, एक तो ऐसे ही आजकल काम नहीं मिल रहा, ऊपर से सूदखोर जान के प्यासे हैं,” भोलन अभी भी चिड़चिड़ाया हुआ था। अपनी अय्याशी और दो का पांच करने की लत पूरी करने के लिए भोलन ने ना जाने किस-किस से कर्जा चढ़ा रखा था जो अब उसके गले की फांस बन गया था।
“तो क्या करने की सोंच रहा है… अब क्या डाका डालेगा?” रामु ने पुछा।
“डाका…तो… नहीं… लेकिन ” भोलन थोड़ी देर चुप रहा जैसे गहरी सोंच में डूब गया हो। “दद्दा ये मटका कोठी का…”
“चुप – चुप … बावरा हो गया है क्या? भरी जवानी में यमराज के पास जाने की जल्दी है?” रामु ने बीच में ही उसे डपट दिआ।
“अरे दद्दा ऐसे ही पुछा … भला जान किसको प्यारी ना होगी…पर कहानी क्या है वो तो बता दो।” भोलन ने रामु को मनाते हुए पुछा।
“बात पुरानी है, गुलामी के दिनों की … मैंने अपने बाबा से जैसी बचपन में सुनी थी,” रामु ने कहना शुरू किआ। “गांव का जमींदार जल्लाद था। छल-कपल-लालच उसके रग-रग में भरा था। किसानों की चाहे चमड़ी चली जाये पर उसकी दमड़ी नहीं जानी चाहिए थी। इंसान से ज्यादा उसे दौलत से प्यार था। इसी कारण उसका परिवार नहीं था। सब उसे छोड़ कर जा चुके थे पर उसे तो जैसे कोई फर्क नहीं पड़ता था।
क्या किसान और क्या उसके गुलाम सब त्रस्त थे लेकिन उसके खौफ के आगे सब मजबूर थे। लेकिन वो कहते हैं ना – हर कुत्ते का दिन आता है। उसका भी आ गया। जमींदार जब बूढ़ा होने लगा धीरे-धीरे उसकी पकड़ ढीली होने लगी। उसके अपने पहलवान जो उसके एक इशारे पर किसी की भी जान ले लेते थे, अब नमक हरामी करने लगे।
फिर वो समय भी आया जब गांव वालों का प्रतिशोध जाग गया। एक तरफ जहां गांववाले जमींदार को ख़तम करने की योजना बना रहे थे वहीँ अभी भी अपनी दौलत के हवस में चूर जमींदार ऐसी व्यवस्था में लगा था की मरने के बाद भी वो अपनी दौलत के साथ हमेशा रहे। जमींदार के कुछ राज ऐसे थे जिनकी भनक किसी को नहीं था। वो पहले ही कोठी में एक गुप्त सुरंग का निर्माण करवा चूका था जहां उसने अपनी दौलत मटकों में भर कर छुपा दी थी और दुष्ट तांत्रिकों से अभिमंत्रित करवा दिया था। धूर्त जमींदार एक लम्बे समय से तांत्रिक गतिविधियों में लिप्त था और जो किसान उससे बगावत करता था वो फिर कभी नहीं मिलता था। कहते हैं जमींदार तंत्र सिद्धि के लिए उनकी बलि दे दिया करता था। जिससे उसका खौफ बरक़रार रहता था।
आखिरकार जमींदार को मारने की रात्रि निश्चित कर ली गयी और ये निर्णय किआ गया की उसकी दौलत को लूटकर गाँवालों में बाँट दी जाएगी। इसकी भनक जमींदार को लग चुकी थी। शरीर से कमजोर जमींदार अपनी सारी दौलत लेकर जमीनीं सुरंग में छुप गया।
हमला अचानक हुआ था मगर जब जमींदार कहीं नहीं मिला तो उन्होंने पूरी कोठी को भयानक आग के हवाले कर दिआ। जमींदार अपनी दौलत के साथ वहीँ सुरंग में मर गया। मगर मरते-मरते भी उसे किसी बात का मलाल नहीं था, क्योंकि उसकी दौलत उसके साथ थी।
मगर उसके बाद कई बार दौलत के उन मटकों पाने की कोशिश की गयी मगर वापस कोई नहीं लौटा, लौटी तो एक कहानी। अब तो कोई कुत्ता भी उस मनहूस कोठी की तरफ नहीं जाता, इंसान की तो बात ही क्या। कहते हैं की जमींदार एक प्रेत बनकर अपनी दौलत की हिफाजत करता है। अगर कोई किसी तरह उसके खजाने तक पहुंच भी जाता है, दौलत के मटके से यही आवाज गूंजती है, “जान दे, दौलत ले।”
लेकिन सुन रे भोलन …भोलन,” रामु ने भोलन की ओर देखा जो जमीन पे लुढ़का खर्राटे ले रहा था।
(जारी … Read Part-2: Girgit)
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