इंतकाम [भाग-4] – Horror Hindi Story
Intkaam Sleep time hindi horror story
द्रश्य – 1.
“अरे ए भुन्नू जल्दी हाथ चला, अभी कल की मार भूल गया क्या रे.. ” निगरानी करते आदमी ने हड़काते हुए लाठी पटकी। साफ़ था, की वो वहां मौजूद हर किसी पर हनक बना रहा था।
सुरंग में से कुदाल फावड़े के टनटनाने की आवाजे आ रहीं थी, दिवार पे मशाले जल रही थी। पसीने से लथपथ सभी गांववाले बेमन काम किए जा रहे थे। आदमी खुदाई कर रहे थे तो औरतें मिट्टी बाहर निकाल रही थी। दस से पंद्रह लोग होते हुए भी क़िसमें इतनी हिम्मत थी जो उस लाठीधारी के खिलाफ आवाज भी ऊँची करते। आखिर कौन गिरगिट स्वामी का सामना करता। —————
द्रश्य – 2.
सुरंग से सटे एक कमरे में कुछ ऐसा वातावरण है जैसे कोई जटिल तांत्रिक अनुष्ठान होने जा रहा हो। जमीन पर कुछ लाल कुछ सफेद रंग से मंडप बनें हैं। लाल रंग के मंडप के मध्य एक हवन कुंड धधक रहा है। सफ़ेद मंडप के बीच में एक मृत शरीर नग्न पड़ा है जिसे कमर के नीचे एक सूती कपड़े से ढका गया है। हवन के निकट एक अधेड़ तांत्रिक तेज मंत्रोच्चार कर रहा। बीच बीच में हवन में आहूति डालने के साथ साथ उस बेजान शरीर में कंपन होने लगता है मानो उसमें किसी प्रकार के प्राण प्रवेश कर रहे हो।
इसी बीच वहीं बंदी पड़े भोलन को होंश आने लगता है। मदहोंशि सी अवस्था में वो ये सब दृश्य देखरहा है।
“उठ गया बच्चा?” तांत्रिक ने कहा। भोलन आवाज़ सुनकर चौँक उठा। ये तो एक ही आदमी हो सकता है।
“दद्दा; तुम?” भोलन सकते में था। सपने में भी नहीं सोंचा होगा भोलन ने रामू को यहाँ ऐसे देखने की, पर सवाल था क्यों?
“दद्दा नहीं; तेरा काल,” रामू ने तरेरते हुए भोलन को जवाब दिया। “अरसे से इस घड़ी का इंतज़ार था, आज होगा काम पूरा।” रामू की आँखों में रहस्य भरा था। भोलन सोंच रहा था कि रामू ने उसे समझाना शुरू किया। “ये इंतकाम आज का नहीं, बरसों पुराना है, जब तेरे पुरखों ने मेरे पुरखों को मारने की कोशिश की थी।”
भोलन के चेहरे से साफ की वो रामु की बातों को ठीक तरह से नहीं समझ पा रहा। रामू ने इसलिए सीधे सीधे बताना शुरू किया, “ऐसे क्या देखता है रे, ये मटका कोठी मेरे पुरखों की है, और मटका कोठी का असली वारिस भी मैं ही हुँ। और तू, तू है उस मुखिया का वंसज जिसने जमींदार को रातों रात खतम करके उनकी दौलत लूटने की शाजिश रची थी। उसी वजह से जमींदार को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। एक अरसा लग गया मुझे जमींदार के इन्तेक़ाम को पुरा करने में।”
“किसे बहलाते हो दद्दा, पूरा गाँव जनता है की जमींदार कितना कमीना था। और जिस दौलत पे तुम हक़ जमा रहे हो ना वो पवनपुर के लोगों खून-पसीने की कमाई थी। जिन गांववालों के बीच रहे उन्ही को देखा दिए, वाह दद्दा वाह!” भोलन ने करारा जवाब दिआ तो रामू बिलबिला उठा।
“चुप कर, तुझे पता भी है कितना मुश्किल था अपने दुश्मन के वंशज को अपने सामने पलते देखना, अपनी साधना पूरी करना, गाँवालों को मटका कोठी से दूर रखना और एक एक करके इतने सालों में इन गुलामों को इकठ्ठा करना ताकि खजाने की खुदाई चलती रहे। पर सब्र की घडी आज पूरी हुई है, खजाने की मोहलत के अनुसार आज मेरी साधना के तीसरे दिन तेरी, यानी दुश्मन की बलि चढ़ाकर उन्हे (जमींदार को) प्रेत यौनि से मुक्ति मिलेगी और मुझे मिलेगा मटका कोठी का खजाना।” रामू के चेहरे पर अजीब घिनोनी संतुष्टि की चमक थी।
इतना कहने के बाद, उसने अपने झोले में से एक मरा हुआ गिरगिट निकाला और हाथ मे लेकर कोई मंत्र फूँकने लगा। जैसे जैसे वो मंत्र बोलता वहाँ पड़े उस मृत शरीर में हलचल होने लगी। वो उठ बैठा, फिर खड़ा हुआ और भोलन की ओर चलने लगा। उसका पहले चेहरा और फिर धीरे धीरे पूरा शरीर बदलकर किसी सरिश्रप के आकार का होने लगा। भोलन ये देखकर दंग रह गया। वो जल्दी से अपनी हाथ की रस्सी को पत्थर पर घिसने लगा। मगर वो सरिश्रप उसके निकट आ गया था। उसने एक जोर का हाथ मारा और भोलन उच्छलकर दूसरी दीवार से टकराकर कर गिर पढ़ा। भोलन दर्द से कराह उठा। सरिश्रप फिरभी नहीं रुका और एक बार फिर हमला करने के लिए भोलन के उपर झपटा। इसबार भोलन तैयार था जैसे ही उसपर हमला हुआ वो ज़मीन पर लुढ़क कर दूर हठ गया।
उसने देखा की सरिश्रप अपने आप कुछ नहीं कररहा, रामू के हाथ में जो गिरगिट है वहीं इस सरिश्रप को नियंत्रित कर रहा है यानी इस दानव की जान उस गिरगिट में कैद है। भोलन ने थोड़ा जोर लगाया तो कमजोर रस्सी टूट गई। लेकिन उसने कोई हरकत नहीं की। वो निर्जीव सा वहीं पड़ा रहा और सरिश्रप के निकट आने की प्रतिक्षा करने लगा। ये सोंचकर की भोलन कोई हरकत नहीं कर रहा दानव जांचने के लिए उसकी और बढ़ा। उसने पास आकर उल्टे पड़े भोलन को सूंघने के लिए अपना सर करीब किया। बस यही मौका था। बिजली की रफ्तार से भोलन ने एक पत्थर उसके मुँह पर दे मारा। वार इतना अचुक था की दानव की एक आँख से खून का फव्वारा फूट पड़ा। अगले ही पल भोलन रामू के पास खड़ा था। इसके पहले रामू कुछ समझ पाता गिरगिट भोलन की मुट्ठी में था। दानव पुनः भोलन की तरफ लपका मगर अबतक भोलन गिरगिट को हवन की आग में स्वाहा कर चुका था। रामू बस चींखता रह गया, उसकी आँखों के सामने उसकी सालों की मेहनत, उसका बनाया दानव धूं धूं करके राख बन गया।
“क्यों दद्दा, कैसी रही?” भोलन ने ताना मारकर रामू की मौज ली, “का सोचें, बचपन से पालकर, बकरे की तरह हलाल करोगे… अरे थू रे। कितना लोगों को मारा तू… कोई रहम किया? अब ये गाँव वाला तेरे को मरेगा।” कहते हुए भोलन ने दरवाजा खोल दिया जहाँ गाँव वाले अपना अपना बदला लेने को उतावले थे।
देखते ही देखते भीड़ ने रामू को घेर लिया और अब भीड़ के शोर में मिली रामू की चींख सुनाई दे रही थी।
कहानी समाप्त।
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