गिरगिट [भाग-2] – Horror Hindi Story

Girgit Sleep time Hindi horror story

प्रथम भाग- मटका कोठी

रात के का दूसरा प्रहर, धुप्प अँधेरा और डमरू के बकरी बाड़े में उथल पुथल मची है। बाड़े का दरवाजा खुल गया था और बकरियां मनमानी सी मैदान में घूम रहीं थीं। डमरू सबको वापस बाड़े में हाँक रहा है। काफी देर और मशक्कत के बाद वो फिर से बाड़े में आ जाती हैं। दरवाजे को गाँठ से कसकर बाँध कर डमरू माथे का पसीना पोछता है। झोपड़ी में जाने के लिए वापस मुड़ता तो उसका जी पुनः कुढ़ जाता है। एक बकरी दूर निकल गयी थी उसने लालटेन उचकाकर संदेह दूर किआ। करता भी क्या बाहर तो छोड़ नहीं सकता था कोई जंगली जानवर दबोच लेता नहीं तो भोलन जैसे उचक्कों का भय भी था। सो मन मसोकर उसे पकड़ने के लिए बड़बड़ाता हुआ आगे चला। 

बकरी और उसके बीच सपाट सा मैदान था और आगे झाड़ियां शुरू होती थीं वो बकरी उन्ही के बीच खड़ी थी जैसा डमरू को दिख रहा था अब भला लालटेन की रौशनी में कोई कितना दूर देख पाता बाकि केवल चन्द्रमा की गोधूलि रौशनी थी वहां। अचानक उसे ठोकर लगी, लालटेन उसके हाथ से छूट कर गिरी और बुझ गयी। किसी तरह वो खड़ा हुआ और चाँद की रौशनी में बकरी को पुचकारने लगा। यद्यपि रोशनी काफी कम थी मगर बकरी पुचकार सुनकर आ रही थी। मगर कुछ अजीब था। बकरी जैसे – जैसे करीब आ रही थी उसका आकार बढ़ता जा रहा था और करीब आते-आते उसकी ऊंचाई डमरू के कंधे तक पहोच गयी। दहशत से डमरू वहीँ गिर गया। वो बकरी गुर्रा रही थी पर बकरी गुर्राती नहीं। आगे आते हुए उस बकरी या वो जो भी था अब दो पैरों पे चलने लगा। डमरू को देखकर मानो वो मुस्कुरा रहा हो। अब वो डमरू के बिलकुल ऊपर था उस जीव की साँसे वो अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था। उसकी लाल अंगारे जैसी सुलगती आंखों में डमरू को अपनी मौत दिख रही थी। 

और इससे पहले की डमरू अगली सांस पूरी कर पाता दानव के दांत उसकी गर्दन में धंस गए। 

[5 साल बाद]

सुबह का समय है और रामु दूकान मैं बैठा ग्राहकों का इंतज़ार कर रहा है। पिछले कुछ समय गाँव की हालत ठीक नहीं है। मवेशिओं के साथ कई लोगों के लापता होने की खबरें फैली हैं। अफवाह है की कोई बहरूपिया दानव है जो किसी का भी रूप धर कर लोगो और मवेशियों को उठा ले जाता है। सौ से ज्यादा लोग लापता है और किसी की खबर नहीं। गांववालों वालों ने उसे नाम गिरगिट है- गिरगिट।

एक सुंदर घोड़ा बग्घी रामु की दूकान के पास आकर रूकती है। ऐसी सुन्दर घोड़ा गाड़ी केवल बड़े जमींदारों के पास ही होती थी। दो पहलवानों ने पीछे से उतर कर तुरंत बग्घी का दरवाजा खोला तो उससे एक मूछों पे ताव देता हष्ट पुष्ट आदमी उतरा जिसे देखके ही मालूम होता था की वो कोई अमीर सेठ है।  एक पहलवान तुरंत छतरी लेकर उसके पीछे चल दिया। 

इतने रौब देखकर रामु के  देहाती जाग गया उसे लगा की आज शायद कमाई का सूखा ख़तम होगा। हजूर हजूर करता वो भी खुशामद करता चला आया। लेकिन एक पल को उसे लगा की उस सेठ को उसने देखा है कहीं पर उन पहलवानों को देखकर उसकी हिम्मत न हुई अपनी हड्डियां तुड़वाने की इसलिए ज्यादा ना बोला। 

“का दद्दा … पहचाने नहीं?” रामु चौंका की ये दद्दा तो कहने वाला एक ही आदमी है पर पिछले 5 साल से उसका कहीं अता पता नहीं था। 

“भ – भोलन? तू है का?” रामु ने  हिचकते हुए पूछा। 

“हाँ दद्दा, हम ही हैं।”

“कहाँ चला गया रहे रे तू? कितना ढूंढा और ये ठाठ-बाट… कैसे?”

“अरे दद्दा सब बताएँगे पहले चाय से गला तो तर करो” दोनो गले मिले और फिर चाय के साथ बातों का दौर चला। भोलन ने बताया की वो शहर भाग गया था लेनदारों से बचने के लिए वहां काफी दिनों तक भटकने के बाद एक भले सेठ को कुछ बदमाश मारने की कोशिश कर रहे थे तो उसने अपनी जान पे खेलकर उनकी जान बचाई मगर खुद घायल हो गया था और बहोत दिनों तक उनके घर  इलाज होता रहा। जब ठीक हुआ तो सेठ ने उसका सारा हाल सुना समझा और अपने यहां ही नौकरी पे रखा। इतनी ठोकरों ने भोलन का दिल भी बदल दिया था अब पैतरे बाजी की जगह होशियारी, मेहनत और ईमानदारी ने ले ली थी। बुजुर्ग सेठ के कोई औलाद ना थी और भोलन को वो पहले ही परख चुके तो सेठ ने भोलन को गोद ले लिया   जिम्मेदारी उसे सौंप दी। भोलन पवनपुर गांव अपने सारे लेनदारों का पैसा उनके मुँह पे मारने आया है। 

“और तुम बताओ दद्दा गाँव के क्या हाल हैं?” 

“अरे पूछ नहीं भाई। तेरे जाने के बाद यहां गिरगिट की दहशत फैली है ना जाने कितने गांव वाले गायब हुए और मवेशिओं की तो गिनती नहीं। रात का अँधेरा कब किसकी मौत लेकर आएगा पता नहीं। बहोत खोजा गया मगर कोई सुराग नहीं। मिलेगा भी तो कैसे कोई एक रूप तो हो, कभी भेड़, कभी भैंस तो कभी कोई बूढ़ा आदमी और एक बार तो बच्चे के भेस में भी देखा गया है। मेरी मान तो तू ना रुक ज्यादा यहां। मैं भी यहां से निकलने की तैयारी कर रहा हूँ।”

“तुम चिंता ना करो दद्दा इतने पहलवान ऐसा ना रखे मैंने, और भोलन को तो तुम जानते ही हो। देखता हूँ इस गिरगिट को।” कहते भोलन ने मूछों पे ताव दी, “बड़ी टेढ़ी खीर है तेरा भोलन।” दोनों हंसने लगे।

[उसी रात]

गांव का पुराना धर्मशाला किराये पे लिया गया भोलन के ठहरने के लिए। हालत ठीक तो नहीं थी मानो कभी भी दम तोड़ दे पर एकाद दिन तो गुजारने के लिए ठिकाना तो चाहिए ही था ना। आठ पहवानों ने धर्मशाला को किला बना दिया था। हर तरफ गश्त लगते पैनी नजर थी उनकी। ठीक सुबह से पहले रात का एक ऐसा घना प्रहर आता है जो शैतान को भी नींद में डुबा देता तो पहलवान क्या थे। बस वही हुआ। 

मुख्य द्वार पे पहरा दे रहे पहलवान खड़े-खड़े ही खर्राटे ले रहे थे। पहले पहलवान को लगा जैसे उसके पेअर के पास कोई चूहा मर गया है ऐसी दुर्गन्ध ने उसकी नाक चीर दी। नींदासी आखों से उसने देखा तो कुछ नहीं था, “का रे सांड जब गोभी मूली हजम नहीं होता तो क्यों ठूंस लिआ पराठा।” वो दूसरे पहलवान को बड़बड़ाया पर वो भी नींद में चिकना घड़ा था। सो पहले पहवान ने फिर से आँखें बंद कर ली। एक पल के लिए उसे लगा की कोई सामने खड़ा उन्हें रहा है सो उसने फिर देखा, “अरे चच्चा, इतनी रात गए? अभी सुबह तो मिले थे मालिक से। चलो अभी जाओ सुबह मिल लेना अभी सोते होंगे मालिक।” मगर रामु जैसी आकृति वाला वो देहाती बिना हरकत किए ज्यों का त्यों खड़ा था। 

पहलवान को लगा की शायद देहाती को बात समझ नहीं आयी तो जरा जोर देने के लिए आगे बढ़ा तो वो आदमी पीछे सरक गया। लेकिन पहलवान ने गौर किआ की उस देहाती ने पीछे हटते समय अपना एक कदम भी नहीं उठाया था मानो हवा में तैर रहा हो। “गिरगिट…” पहलवान के होश उड़ गए, काटो तो खून नहीं। उसने बोलना चाहा पर गला डर से जाम हो गया। फिर साये ने पहलवान को अँधेरे में सोख लिया।

जारी … तृतीय भाग- शिकार

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धन्यवाद एवं आभार

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